दवाइयां जलाने के मामले में लीपापोती करने का किया जा रहा प्रयास।

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गुरुवार की देर शाम जेशीबी मशीन की मदद से शेष बची एक्सपायरी दवाइयों को जमींदोज कर दिया गया। घटना के चौबीस घंटे बीतने के बावजूद मामले की जांच करने के लिए विभाग के उच्चाधिकारी नहीं पहुंचे, जिसे लेकर कई तरह की चर्चाएं चल रही है। जानकारों का कहना है कि इस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में लगभग दस लाख मूल्य की एक्सपायरी दवाइयां सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए जला दी गई।

इधर प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी ने अपने बचाव के लिए गुरुवार की देर शाम तकरीबन 7:37 बजे जेसीबी मशीन द्वारा गढ्ढा खुदवाकर शेष बची दवाइयों को गड़वा दिया। जानकारों ने बताया कि इस प्रकरण में प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ देवानंद मिश्रा स्वयं के बयान में उलझ गए हैं। देवानंद मिश्रा का कहना है कि 10 वर्ष पूर्व से भंडार में एक्सपायरी दवाइयां रखी हुई थी, जिसे गड्ढा खोदकर उसे जमीन में मिला देना था। प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी देवानंद मिश्रा की ही बात मानी जाए तो अगर दिन के 1:00 बजे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र परिसर में सामाजिक तत्वों द्वारा आग लगाई जाती है तो यह सुरक्षा व्यवस्था को लेकर बहुत बड़ी चुनौती है, क्योंकि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र शिकारीपाड़ा की सुरक्षा को लेकर 4 होमगार्ड तैनात किए गए हैं।

होमगार्डों की तैनाती के बावजूद दिन में असामाजिक तत्वों द्वारा आग लगाया जाना एक बहुत बड़ा प्रश्न खड़ा करता है। इतना ही नहीं थाने से महज कुछ ही दूरी पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अवस्थित है। दवाइयां जलाए जाने के क्रम में विस्फोटक जैसी आवाज निकलने के कारण थाना के पदाधिकारी ने भी स्थल का निरीक्षण गुरुवार को किया था, लेकिन थाना प्रभारी उमेश राम का कहना है कि जब तक प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी कोई लिखित आवेदन नहीं देते हैं पुलिस सीधे कोई कार्रवाई नहीं कर सकती है। यदि प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी की बात मानी जाए तो असामाजिक तत्वों को केवल एक्सपायरी दवाओं में आग लगाने की क्या आवश्यकता थी, जबकि दवाइयां 10 वर्ष पूर्व की बताई जाती हैं।

स्थानीय लोगों के अनुसार विभाग के वरीय पदाधिकारी द्वारा यदि इसकी गंभीरता से जांच की जाए तो स्थिति स्वत: स्पष्ट हो जाएगी, क्योंकि यदि एक्सपायरी दवाइयां 10 वर्ष पूर्व से सीएससी के भंडार कक्ष में पड़ी हुई थी तो 10 वर्ष से लेकर आज तक के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी और भंडार पाल क्या कर रहे थे? क्या पूर्व में इसकी सूचना तात्कालीन प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारियों द्वारा अपने उच्चाधिकारियों को दी गई थी या नहीं? उक्त सवाल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र शिकारीपाड़ा के कार्यशैली पर प्रश्न खड़ा करते है।

ज्ञात हो कि शिकारीपाड़ा प्रखंड आदिवासी बहुल प्रखंड है। गरीब जनता जब इलाज के लिए जाती है तो मौजूद चिकित्सकों द्वारा ऐसा कहा जाता है कि दवा नहीं है, दवा बाहर से खरीद लें। बाध्य होकर यहां की गरीब जनता को पश्चिम बंगाल का शरण लेना पड़ता है, जबकि सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई दवाइयां आज नष्ट करने की स्थिति में पहुंच गई है।

इधर असैनिक शल्य चिकित्सक सह मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डॉक्टर बच्चा प्रसाद सिंह ने बताया था कि किसी भी परिस्थिति में दवाइयों को जलाना नहीं है यह बहुत बड़ा अपराध है। जांच कर कार्रवाई की जाएगी, लेकिन घटना के चौबीस घंटे बीतने के बावजूद खबर लिखे जाने तक स्वास्थ्य महकमे से कोई भी वरीय पदाधिकारी जांच के लिए शिकारीपाड़ा नहीं पहुंचे थे। पुलिस सूत्रों की माने तो प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी शिकारीपाड़ा द्वारा थाने में मामला दर्ज करने के लिए आवेदन दिया गया है।

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