आदिवासियों की धार्मिक आजादी के आंदोलन को सफल बनाने के लिए 8 नवंबर 2023 रांची चलो – सेंगेल सालखन मुर्मू।
रांची : आदिवासी सेंगेल अभियान द्वारा रांची के मोरहाबादी मैदान में 8 नवंबर को ( दिन 12:00 बजे से 3:00 तक ) आहूत सरना धर्म कोड जनसभा में देश-विदेश के लाखों प्रकृति पूजक आदिवासी शामिल हो रहे हैं। जिनकी मांग है सरना धर्म कोड घोषणा के साथ-साथ सरकारों द्वारा आदिवासी धर्मस्थलों यथा मरांग बुरू, लुगु बुरु और अयोध्या बुरु आदि का संरक्षण और संवर्धन होना अनिवार्य है। प्रकृति पूजकों के ईश्वर, आस्था, विश्वास, पूजा पाठ पर कुठाराघात अब आदिवासी बर्दाश्त नहीं करेंगे। रांची का सरना आदिवासी जनसभा भारतीय आदिवासियों के सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक गुलामी से आजादी का शंखनाद है। बृहद आदिवासी एकता और निर्णायक जन आंदोलन की दिशा में एक बड़ी अहम घटना साबित हो सकता है।
भारत देश में लगभग 75 वर्षों की आजादी के बावजूद अब तक आदिवासी गांव- समाज गुलामी की जीवन जीने को मजबूर है। आदिवासीयों का लगभग हर गांव- समाज सामाजिक गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ है। क्योंकि अभी भी आदिवासी गांव- समाज में नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा, ईर्ष्या द्वेष, महिला विरोधी मानसिकता, बहुमूल्य वोट की खरीद बिक्री, राजतांत्रिक स्वशासन व्यवस्था हाबी है। अंततः सभी आदिवासी गांव- समाज में संविधान, कानून, मानव अधिकार और जनतंत्र लागू नहीं है। इसके लिए आदिवासी गांव- समाज में परंपरा के नाम पर वंशानुगत नियुक्त आदिवासी स्वशासन व्यवस्था के अगुआ (माझी परगाना, मानकी मुंडा आदि) दोषी हैं तो भारतीय पुलिस और प्रशासन व्यवस्था के संचालक भी उदासीन और निष्क्रिय हैं। सिविल सोसाइटी का योगदान नगण्य है। राजनीतिक दल और आदिवासी नेता आदिवासी गांव- समाज को जगाने के बदले सुलाने का काम करते हैं।
आदिवासियों की धार्मिक गुलामी बदस्तूर जारी है। संवैधानिक मौलिक अधिकार के बावजूद अब तक प्रकृति पूजक आदिवासियों को सरना धर्म कोड नहीं देना उन्हें जबरन हिंदू , मुसलमान, ईसाई आदि बनाकर गुलाम बनाए रखने की जोर जबरदस्ती है। आदिवासी राजनीतिक रूप से भी गुलाम की तरह मजबूर हैं क्योंकि लगभग सभी राजनीतिक दल जहां आदिवासियों के हासा, भाषा, जाति , धर्म, रोजगार आदि की बात नहीं करते हैं। वहीं आरक्षित सुविधा से पद, प्रतिष्ठा और लाभ प्राप्त करने वाले लगभग सभी आदिवासी सांसद, विधायक आदि आदिवासी समाज की बात नहीं करते हैं। आदिवासी सामाजिक जनसंगठन भी उन्ही पार्टियों और आदिवासी नेताओं की परिक्रमा करते हैं, जो समाजहितों के खिलाफ पार्टीयों की गुलामी करते हैं।
आदिवासी सेंगेल अभियान फिलवक्त झारखंड बंगाल बिहार उड़ीसा असम त्रिपुरा अरुणाचल प्रदेश के लगभग 50 आदिवासी बहुल जिलों के लगभग 400 प्रखंडों में कार्यरत है। सरना धर्म कोड को केंद्रित कर बृहद आदिवासी एकता और जन आंदोलन को व्यापक और निर्णायक बनाने में संघर्षरत है। आदिवासी समाज को कमजोर करने वाली पार्टियों,आदिवासी नेताओं, आदिवासी जनसंगठनों और आदिवासी स्वशासन प्रमुखों को बेनकाब करते हुए सेंगेल, आदिवासी समाज को गुलामी से आजादी की मंजिल तक पहुंचाने का संकल्प पूरा करेगा। रांची में 8 नवंबर का सरना जनसभा भीड़ नहीं भीड़ने वालों का शपथ स्थल बनेगा।