अपने दम पर भी हो सकती है जातीय-जनगणना झारखण्ड में – नायक

रांची: आज झारखंड बचाओ मोर्चा के केंद्रीय संयोजक सह आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के केंद्रीय उपाध्यक्ष विजय शंकर नायक ने मुख्यमंत्री को भेजे गए अपने ईमेल पत्र के माध्यम से कहा कि झारखंड सरकार स्वयं अपने संसाधन और खुद के बलबूते जातीय गणना की पहल कर पूरा। इन्होने यह भी कहा कि मुख्यमन्त्री ने यह जानकारी दिया है कि 2 वर्ष पूर्व सभी दलों के सहमति से जातीय-गणना के लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मांग कर चुके हैं।

श्री नायक ने मुख्यमंत्री और झारखंड के सर्वदलीय शिष्टमंडल के सदस्यों के द्वारा जातीय गणना कराने के लिए उठाए गए पूर्व के कदमों का स्वागत करते हुए यह भी कहा कि आज 2 वर्ष से अधिक दिन हो चुके हैं मगर केंद्र में बैठी भाजपा की सरकार ने जब इस दिशा में कोई पहल नहीं की तब झारखंड सरकार को हाथ में हाथ धरकर नहीं बैठना चाहिए था बल्कि बिहार सरकार के तर्ज पर अपने आंतरिक संसाधनों के बदौलत जातीय गणना करा लेना चाहिए मगर इस दिशा में झारखंड सरकार ने कोई ठोस पहल नहीं किया और वह इस विषय पर 2 साल तक चुप्पी साधे रहे । जब झारखंड बचाओ मोर्चा ने मुख्यमंत्री को 4 अक्टूबर को ईमेल भेजकर जातीय जनगणना कराने की मांग को प्रमुखता से उठाने का काम किया तब मुख्यमंत्री ने यह जानकारी साझा करने का काम किया जो झारखंडी समाज के साथ धोखा है।

श्री नायक ने आगे कहा कि अगर झारखंड की हेमंत सरकार द्वारा केंद्र सरकार के भरोसे नहीं रहती और खुद अपने आंतरिक संसाधनों के बदौलत जातीय गणना कर लेती है तो हो सकता है कि जातीय गणना कराने वाला यह देश का पहला राज्य होता, और अब तक इसके आंकड़े भी आ जाते तथा झारखंड के अनुसूचित जाति/जनजाति/पिछड़े एवं अति पिछड़े वर्गों को इसका आरक्षण में लाभ भी मिल गया होता, और नई झारखंड की सरकार की आरक्षण नीति भी डंके की चोट पर सरकार लागू कर दी होती. राज्यपाल या उच्च न्यायालय इस दिशा में विरोध नहीं कर पाते क्योंकि, जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी इतनी भागीदारी वाली नीति को कोई काट नहीं सकता। कल ही सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की ओर से कराई गई जातिगत गणना से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के जातिगत जनगणना को रोकने संबंधी याचिका पर स्पष्ट रूप से रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि हम किसी राज्य सरकार को नीति बनाने या काम करने से रोक नहीं सकते ।

श्री नायक ने झारखंड की सरकार से मांग किया कि वह अभी भी समय अपना जाया ना करते हुए अनुसूचित जाति/जनजाति/पिछड़े एवं अति पिछड़े वर्गों के हितों का सवाल को देखते हुए खुद अपने आंतरिक संसाधनों के बदौलत जातीय-गणना करने की दिशा में ठोस पहल करके एक नया इतिहास बनाने की दिशा में अग्रेतर कार्रवाई करते हुए ठोस पहल करें ताकि जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी इतनी भागीदारी वाली नीति को अमली-जामा पहनाया जा सके।

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